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यस आई एम—18 [फूड एलर्जी]

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नॉवेल 

मुर्दुल ने वैदिक की घर खरीदने में हर तरह से मदद की। धीरे धीरे वैदिक की जिंदगी में सब कुछ सही हो होने लगा। जल्द ही नौकरी में उसे प्रमोशन भी मिल गया। स्वर्णा ने भी घर से ही खुद का काम करना शुरू कर लिया। दोनों अपनी बेटी को ही अपनी खुशहाल जिंदगी की वजह मानते थे।

“तृषा.....बेटा तृषा।” स्वर्णा ने रसोई के अंदर से आवाज लगाते हुए कहा। जवाब ना मिलने पर घर के आंगन में आकर इधर उधर देखने लगी। पर उसे तृषा कही पर भी दिखाई नही दी। वह जाने ही वाली थी कि तभी उसकी नजर घर के आंगन में खेल रही तृषा पर पड़ी। उसे देखते ही स्वर्णा अपना माथा पीट लिया। वह बड़बड़ाते हुए बोली। “ये लड़की भी ना! कही भी खेलने लगती है। इसे अपनी ही दुनियां में मस्त रहना है। बच्चों को जब भूख लगती है तो वे रोने लगते है और ये लड़की इसे अपने पेट की भी फिक्र नहीं।” कहते हुए स्वर्णा तीन साल की तृषा की ओर बढ़ गई।

स्वर्णा ने तृषा के पास जाकर देखा तो पाया कि वह आंगन में बनी हुई क्यारियों में मिट्टी के साथ खेल रही है। ध्यान से देखने पर पता चला कि कृषा मिट्टी में कुछ ढूंढ रही है। स्वर्णा ने उसे उठाया और उसके हाथ साफ करने लगी। कृषा के हाथ साफ करते हुए वह बोली। “बेटा आप यहां क्या देख रहे है?”

“वो एक कीड़ा, चींटी को उसके घर से निकाल रहा था।” तृषा ने बड़ी ही मासूमियत के साथ जवाब दिया।

“फिर आपने क्या किया?” स्वर्णा ने तृषा के कपड़े साफ करते हुए पूछा।

“मैने कीड़े को मार दिया। दूसरों के घर पर कब्जा करना गलत बात है। हैं ना मम्मी? अपने से कमजोर को कभी नही सताना चाहिए।” तृषा ने बिना किसी भाव के जवाब दिया।

“पर ये सब तो चलता रहता है? सजा के लिए भगवान है ना बेटा।” स्वर्णा ने तृषा का चेहरा बड़े ध्यान से देखते हुए कहा।

“नही मम्मा! ऐसे कैसे चलता रहेगा। हम चाहे तो इसे रोक भी सकते है। कभी भी अपनी आंखो के सामने गलत होते हुए नही देखना चाहिए।” तृषा ने जवाब दिया और फिर क्यारी में पड़े हुए मरे हुए कीड़े को देखते हुए बोली। “मैने उसे मार दिया। उसे उसकी सजा मिल गई।” कहकर वह खिलखिला कर हंस पड़ी। 

स्वर्णा बड़ी ही हैरानी के साथ उसके चेहरे को देखने लगी। बचपन से कृषा ऐसी ही थी। वह खुद में ही खोई रहती थी। उसका दिल नाजुक था। पर वह कभी किसी के साथ गलत होते हुए नही देख सकती थी। वह अपनी उम्र के बच्चों से कई गुना ज्यादा समझदारी रखती थी। उसकी यह समझदारी स्वर्णा के लिए कभी कभी चिंता का सबब भी बन जाती थी।

स्वर्णा ने तृषा को गोद में उठाया और उसे टंकी के पास ले गई। स्वर्णा ने उसके हाथ पाव धोए अच्छे से धोएं फिर उसे सीधा रसोई में ले गई। उसे उसे वही पर रखी हुई एक कुर्सी पर बैठा दिया।

स्वर्णा उसे खाना खिलाते हुए बोली। “बेटा आप को जब भूख लगती है तो आप मुझे क्यों नहीं बताती?” 

“मुझे खुद भी पता नही चलता।” तृषा कुछ देर रुकी और फिर आगे बोली। “फिर आप भूख लगने से पहले ही मुझे खाना खिला देती हो मम्मा। मुझे भूख का पता कैसे चलेगा?” कहकर वह खाना खाने लगी। 

स्वर्णा उसे देखकर मन ही मन सोचने लगी। “पता नही क्या होगा इस लड़की का? सारे काम कर लेती है। पर भूख लगने पर नही खाना खाना तो दूर बताती भी नही है।” स्वर्णा के चेहरे पर चिंता की लकीरें उभर आई।

"मम्मा पेट भर गया।" तृषा ने स्वर्णा को रोकते हुए कहा। आवाज सुनकर वह वास्तविकता में आ गई। 

“बस..इतना सा ही?” स्वर्णा ने खाने की प्लेट को देखते हुए पूछा।

“हां..बस इतना ही। मेरा पेट भी तो इतना सा ही है।” कहकर वह हंस पड़ी और फिर आगे बोली। “मै अपने दोस्तों के साथ खेल लेती हूं।” कहकर वह वहां से चली गई।

“कौन से दोस्त?” स्वर्णा ने बड़ी ही हैरानी के साथ कहा और फिर आगे बोली। “कृषा का तो कोई भी दोस्त नहीं है। फिर किस दोस्त की बात कर रही है वह।” सोचते हुए स्वर्णा के चेहरे के भाव बदलने लगे।



“वैदिक देखो क्या हुआ मुझे?” स्वर्णा ने जोर से आवाज लगाते हुए कहा। स्वर्णा अब लगभग पचास की उम्र पार कर चुकी थी।

“दिखाना क्या हुआ?” वैदिक से स्वर्णा के पास आते हुए पूछा। पास आते ही वह उसका हाथ देखने लगा। उस पर गोल गोल दाने बने हुए थे। कुछ दिन पहले एक ही दाना निकला हुआ था। जो धीरे धीरे बढ़ कर पूरे शरीर पर फैल गए।

“ये तो एलर्जी है। वो भी फूड एलर्जी।” कहकर वैदिक कुछ रुका और सोचते हुए बोला। “तुमने आखिर ऐसा क्या खा लिया था?” 

“कुछ भी तो नही।” स्वर्णा ने जवाब दिया। दोनों में से कोई कुछ भी कह पाता उस से पहले ही स्वर्णा की नजर वैदिक के हाथ पर पड़ी। वह चिल्लाते हुए बोली। “वैदिक! तुम्हारे हाथ पर भी दाने निकले हुए है।” उसकी आवाज में परेशानी साफ झलक रही थी।

“तुमने ऐसा क्या खा लिया?” स्वर्णा ने परेशान होते हुए पूछा।

“कुछ नही खाया ऐसा। परेशान होने की कोई बात नही है, एक दाना ही तो है। ऐसे ही निकल गया होगा।” वैदिक ने लापरवाही के साथ जवाब दिया।

“ऐसे कैसे?” वह रुकते हुए बोली। “पहले मुझे भी एक ही दाना निकला था और अब देखो पूरी बॉडी पर फैल गया।”

“क्या...? और तुम मुझे आज बता रही हो।” वैदिक की आवाज में गुस्सा और हैरानी के मिले जुले भाव शामिल थे। वह रुकते हुए बोला। “चलो... अभी के अभी हॉस्पिटल जाना है।” वैदिक ने अपनी जगह से खड़े होते हुए कहा।

“अभी....?” स्वर्णा ने बच्चों सा मुंह बनाते हुए पूछा।

“हां... अभी मतलब अभी। पचास की हो गई हो, पर हरकतें पांच साल के बच्चों जैसी है।” वैदिक ने बड़े ही सख्त लहजे में कहा। 

“ठीक है। कपड़े चेंज कर लेती हूं।” कहते हुए वह अपनी जगह पर खड़ी हो गई और वहां से चली गई। कपड़े बदलने के बाद दोनों हॉस्पिटल चले गए।

मुर्दुल के कहने पर दोनों हॉस्पिटल के एक वॉर्ड में ही लेट गए। काफी देर इन्तजार करने के बाद भी वहां पर कोई नहीं आया।

“भाई साहब तो कह रहे थे कि जल्द ही किसी नर्स को भेज देंगे।” स्वर्णा ने अपने हाथों को खुजाते हुए पूछा।

“आ जाएंगे भाग्यवान। मुर्दुल ने कहा है तो जरूर आ जाएगी नर्स।” वैदिक ने कहा और फिर आगे बोला। “तुम कई बार पूछ चुकी हो। आराम कर लो। जब नर्स आएगी तब पता चल जाएगा।” 

“ठीक है।” स्वर्णा ने सपाट भाव के साथ कहा। वह खुजली की वजह से परेशान हो चुकी थी।

कुछ देर इन्तजार करने के बावजूद भी वहां पर कोई नहीं आया। स्वर्णा बैचेन होते हुए बोली। “अब तो बहुत देर हो गई है। अभी तक भी कोई नही आया।” उसकी आवाज में झुंझलाहट साफ झलक रही थी।

“क्या हुआ?” वैदिक ने बड़ी ही शालीनता के साथ पूछा।

“एलर्जी में बहुत ज्यादा खुजली हो रही है। ये एलर्जी मेरी जान ले लेगी।” स्वर्णा ने जवाब दिया। उसकी आवाज में तकलीफ साफ साफ दिखाई दे रही थी। 

“ठीक है। तुम यही रुको। मै मुर्दुल से पूछ कर आता हूं।” कहकर वैदिक अपनी जगह पर खड़ा हो गया और वहां से चल दिया।

बाहर निकलते ही उसकी नजर एक बुर्जुग दंपति पर पड़ी। उनके साथ एक लड़का भी था।



“बेटा तुम्हें हमारे साथ आने की क्या जरूरत थी?” बुजुर्ग महिला ने लड़खड़ाती हुई आवाज में कहा।

“जरूरत क्या थी?” लड़के ने हैरानी के साथ पूछा।

“हां..क्या जरूरत थी? हम दोनों आ ही जाते चैकअप कराने।” बुजुर्ग व्यक्ति ने कांपती हुए आवाज में कहा। 

“बस करो आप दोनों। काम काम बस काम। बचपन में जब मै बीमार पड़ता था तो आप तो सारा काम छोड़ कर मुझे दिखाने आते थे। अब मेरी बारी आई तो आप लोगों को काम की पड़ी है।” लड़के ने गुस्सा होते हुए कहा। 

अपने बेटे की परवाह को देखकर बुर्जुग दंपति के चेहरे पर खुशी साफ झलक रही थी। लड़के ने अपने मां बाप को सहारा दिया और उन्हें अंदर ले गया।

“कहां मिलते है आज कल ऐसे बच्चे? एक मेरा बेटा है जो मेरे साथ रहता भी नही।” कहते हुए वैदिक की आंखों से आंसु छलक आए।

“सर!” इसी आवाज के साथ वैदिक को अपने कंधे पर किसी का हाथ महसूस हुआ। पीछे मुड़कर देखा तो एक नर्स उनके पीछे खड़ी हुई थी।

“मै वॉर्ड रूम में गई थी। पर वहां पर आपकी बीवी अकेली थी। उन्होंने मुझे आपको बुलाने के लिए भेजा है।” नर्स ने वैदिक को देखते हुए कहा। ध्यान से देखने पर पता चला कि उसकी आंखों में आंसु आए हुए थे।

“ठीक है। चलता हूं।” वैदिक ने अपनी आंखों में आए आंसु को पौछते हुए कहा और फिर दोनों वहां से वॉर्ड रूम में चले गए।

वॉर्ड में जाते ही वैदिक जाकर सीधा बेड पर लेट गया। वैदिक के बेड पर लेटते ही नर्स बोली। “माफ कीजिएगा सर। एक अर्जेंट केस आ गया था। आने में देरी हो गई।” नर्स ने खेद प्रकट करते हुए कहा।

“कोई बात नही। अब पहले चेक अप कर लो।” स्वर्णा ने बात को बीच में काटते हुए कहा।

“ठीक है।” कहकर नर्स दोनों मिया बीवी के हाथों पर बने हुए दानों को गौर से देखने लगी। “आप दोनों ने कुछ गलत खा लिया?” जांच करते हुए नर्स ने पूछा।

“नही तो..हमने ऐसा कुछ भी नही खाया।” दोनों ने एक साथ जवाब दिया।

“याद कीजिए कुछ तो ऐसा खाया होगा।” उसने दोनों के चेहरों को ध्यान से देखते हुए कहा और फिर आगे बोली। “ऐसी एलर्जी तो मशरूम से होती है।”

“अम्म...कुछ दिन पहले पिज्जा खाया था। शायद उसमें किसी ने डाल दिया हो।” वैदिक ने सोचते हुए जवाब दिया।

“उसी में मशरूम डाली होगी।” नर्स ने अपनी शंका जाहिर करते हुए कहा और फिर आगे बोली। “पहले मै आपको एलर्जी का इंजेक्शन दे देती हूं। ताकि यह काबू में आ जाए और उसके बाद ब्लड टेस्ट कर लूंगी।” 

कहने के बाद नर्स से बारी बारी से वैदिक और स्वर्णा के हाथों की नसों से खून टेस्ट के लिए खून निकाल लिया। उसके बाद वह इंजेक्शन लगाने लगी। 

इंजेक्शन लगाने के बाद वह बोली। “दवाई की हाई डोस लगानी पड़ी। ताकि आप लोगों को जल्द ही आराम मिल सके। हाथों में चुभन महसूस हो सकती है। जो दवाई के असर और एलर्जी की वजह से होगी। रिपोर्ट आने के बाद आप सभी का अच्छे से चैक अप कर दिया जाएगा।” नर्स में इंजेक्शन लगाने के बाद कहा।

“ठीक है।” स्वर्णा ने सपाट भाव से जवाब दिया।

“आप दोनों अभी आराम कर लीजिए। बाद में आप घर जा सकते है।” कहकर वह नर्स वहां से बाहर आ गई।



सूनसान गलियारे में पहुंचते ही उसने अपने मूंह से मास्क उतार दिया। वह कोई और नही कैद से छूटी हुई वही लड़की थी। वह मास्क को उतारते हुए बड़े ही खरारनाक ढंग से बोली। “कुछ दिन अपनी जिंदगी जी लीजिए उसके बाद तो भगवान को प्यारा होना ही है।” कहकर वह जोर जोर से हँसने लगी। 

“इतनी खतरनाक और दर्दनाक मौत आज से पहले किसी ने भी अपने मां बाप को कभी नही दी होगी। एक ठंडी और धीमी मौत। डॉक्टर पर इंसान सबसे ज्यादा भरोसा करता है। उसी डॉक्टर की वजह से आप दोनों के शरीर में इंजेक्ट की हुई सुई आपकी जान लेगी।”

वह कोई और नही बल्कि तृषा थी। ना जाने वह यहां पर कैसे पहुंची थी। क्या हुआ था ऐसा जिसने उसे एक कातिल बना दिया वो एक खतरनाक कातिल।

“कितनी मेहनत लगती है। एक खून करने में। खून करने में मेहनत नही लगती...पर बचाव के साथ खून करने में बहुत ज्यादा लगती है।” तृषा ने बड़े ही ठंडे लहजे में अपनी बात कही। जो किसी की भी हड्डियों में सिहरन पैदा कर सकती है।

वह वहां से एक कमरे में चली गई। जब वापिस लौटी तब उसके कपड़े बदले हुए थे। देखते ही देखते वह हॉस्पिटल से गायब हो गई।

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जारी रहेगी...मुझे मालूम है आप सभी समीक्षा कर सकते है, बस एक बार कोशिश तो कीजिए 🤗❤️

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3 Comments

hema mohril

25-Sep-2023 03:30 PM

V nice

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Barsha🖤👑

01-Feb-2022 09:20 PM

Nice

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Arman Ansari

15-Dec-2021 09:24 PM

Behtarin kahani

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